हथौड़े और छेनी के लयबद्ध और सटीक प्रहार की गूंज सुनाई दे रही है. कुशल कारीगरों के हाथ लकड़ी पर आकृतियां बारीकी से उकेर रहे हैं. कारीगरों की ये कोशिश उस खास रथ को आकार देने की है जिस पर ओडिशा के पुरी में रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भगवान बलराम और देवी सुभद्रा सवार होकर निकलेंगे. रथ बनाने के लिए तेज आरी से मोटे लकड़ी के लट्ठों को आसानी से काटा जाता है और फिर उसे उस ढांचे का आकार दिया जाता है जो पवित्र संरचना को सहारा देगा. तटीय शहर पुरी में, जगन्नाथ मंदिर के पास 'रथ खला' नाम की जगह पर हर साल गर्मियों में रथ बनाने का काम शुरू होता है. रथ निर्माण की शुरूआत अक्षय तृतीया के दिन होती है। इलाके में काफी चहल-पहल दिखने लगती है. जगन्नाथ मंदिर के सेवकों के साथ-साथ 75 से ज्यादा कुशल कारीगरों को भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए एक-एक रथ तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. तीन भव्य रथों को महज 58 दिनों में तैयार किया जाता है. इन्हें बनाने में सख्त धार्मिक दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता है और लोहे की कीलों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. ये ऐसी पवित्र परंपरा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है. भगवान के लिए बनाए जाने वाले रथों में किसी भी सामग्री का दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता है. हर साल रथों को बनाने में इस्तेमाल होने वाली हर चीज ताज़ा स्रोत से ली जाती है. जैसे-जैसे रथ आकार लेने लगते हैं, कारीगर उसके हर भाग को पूरी सावधानी के साथ जोड़ते हैं ताकि उसकी पोजीशन सही रहे और यात्रा के दौरान वो सही तरीके से चल सकें. पुरी में इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून को शुरू होने वाली है.