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जाति जनगणना पर बुद्धजीवियों की राय; देश का कमजोर पक्ष सामने आएगा, आर्थिक उन्नति का रास्ता खुलेगा

2025-05-02 7 Dailymotion

मेरठ: देश की आजादी से पहले 1931 में पहली बार देश में जाति जनगणना हुई थी. इसके बाद से यह मुद्दा कई बार चर्चा में आता रहा. अब सरकार ने जाति जनगणना कराने का निर्णय लिया है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इसके फायदे या नुकसान क्या होंगे? इसी मुद्दे पर ईटीवी भारत ने मेरठ में कुछ बुद्धिजीवियों से बात की.

 मेरठ कॉलेज के प्रोफेसर व टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव आनंदवीर सिंह सिंधु ने कहा कि यह निर्णय देश हित में लिया गया है. आरजी पीजी गर्ल्स कॉलेज की प्राचार्या एवं राजनीति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ. निवेदिता मलिक ने कहा कि भारतीय राजनीति में प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ रहे रजनीश कोठारी ने इस विषय पर एक किताब भी लिखी है, जो महत्वपूर्ण है. वह कहती हैं, कि राजनीति में और समाज में जाति एक महत्वपूर्ण कंपोनेंट है. अगर सरकार इसका राजनीतक लाभ लेने के लिए कर रही है, तो इसका तात्कालिक लाभ तो हो सकता है, लेकिन स्थाई लाभ नहीं होगा.अगर वास्तव में ही इस दिशा में तमाम अन्य जो पहलु हैं, उन पर काम किया जाए तो देश में जो तमाम जातियां हैं, उनकी स्थिति क्या है उन सबका डाटा मिल पाएगा. इसके बाद समग्रता के साथ देश हित में काम किया जा सकता है.  

समाज शास्त्र विभाग की प्रोफेसर मंजूलता बताती हैं कि इसे इस तरह से न देखें कि गणना के आधार पर जातियों की गणना की जाएगी. इससे जो जानकारी प्राप्त होगी, उससे हम अपने कमजोर पक्ष को जान सकेंगे. इतिहास विभाग की प्रोफेसर डॉ. पूनम ने कहा कि सरकार सिर्फ जातीय आधार पर जनगणना कराकर वोट बैंक पर फोकस करना चाहती है. यदि सरकार आर्थिक तौर से समाज की उन्नति, विकास के लिए यह करना चाहती है, तो इसे बेहतरीन कदम कहा जा सकता है.

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