जनहित से जुड़ी एक और बड़ी ख़बर का रुख करते हैं..कल देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गंभीर सवाल उठाए..राष्ट्रपति के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से समयसीमा तय करने को लक्ष्मण रेखा लांघने जैसा बताया..आज इसी पर कानूनी और सियासी बहस का तूफान खड़ा हो गया है..कोई इसे सही ठहरा रहा है..तो कोई गलत..यही लोकतंत्र की खूबसूरती है..मर्यादा में रह कर गंभीर से गंभीर विषय पर बहस से ही समाधान का रास्ता निकलता है..उपराष्ट्रपति ने जो कहा..वो उनकी राय है..जगदीप धनखड़ कानून के बड़े जानकार हैं..उनके पास वकालत का लंबा अनुभव है..विधायक और सांसद रहे हैं..केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं..राज्यपाल रहे हैं..अब राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति हैं..ऐसे में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों का उनका गहरा और करीबी अनुभव है..ऐसे में उन्होंने जो कहा है..उसके मायने भी बेहद गहरे हैं..उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति के फैसले की समयसीमा तय करने पर गंभीर चिंता जताई..तो एक बार फिर से लोकतंत्र के स्तंभों में आपसी टकराव का प्रश्न खड़ा हो गया..जगदीप धनखड़ ने जो कहा..उसके मुताबिक क्या देश की सबसे बड़ी अदालत को ये अधिकार है कि वो देश के सर्वोच्च पद और प्रथम नागरिक के लिए समयसीमा तय करे? क्या ये संवैधानिक सीमा रेखा लांघने जैसा है या फिर सुप्रीम कोर्ट को इसका हक है? इन सवालों के जवाब की तलाश में आज हमने संविधान के पन्नों को खंगाला..कानून के जानकारों से बात की..तो हमने क्या पाया? ये सबकुछ आपको बताने वाले हैं..