वीडियो जानकारी: 24-05-23, वेदांत संहिता,ग्रेटर नॉएडा
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने कृष्णमूर्ति जी के गहन विचारों को साझा किया है, जिसमें उन्होंने "Freedom from the Known" के दूसरे अध्याय "लर्निंग अबाउट आवर सेल्स" पर प्रकाश डाला है। आचार्य जी ने बताया कि हम अपने बारे में जो कुछ भी सीखते हैं, वह अक्सर धीरे-धीरे होता है, लेकिन सच्चाई को जानने में कोई समय नहीं लगता।
उन्होंने स्पष्ट किया कि जब हम अपने भीतर की सच्चाई को पहचानने में संकोच करते हैं, तो यह बेईमानी है। आचार्य जी ने जोर देकर कहा कि जब सच हमारे सामने आता है, तो हमें तुरंत प्रतिक्रिया देनी चाहिए, बिना किसी विलंब के। उन्होंने एक दिलचस्प उदाहरण के माध्यम से समझाया कि कैसे हम तथ्यों को नकारने की कोशिश करते हैं, जबकि सच्चाई हमेशा हमारे सामने होती है।
इस वीडियो में आचार्य जी की बातें हमें यह सिखाती हैं कि आत्म-ज्ञान और ईमानदारी के लिए हमें अपने भीतर की आवाज़ को सुनना चाहिए और तुरंत सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए।
प्रसंग:
~आत्म-ज्ञान की प्रक्रिया में ईमानदारी का क्या महत्व है?
~अपने भीतर की सच्चाई को पहचानने में सबसे बड़ी बाधा क्या होती है?
~कृष्णमूर्ति जी के अनुसार, सच्चाई को स्वीकार करने में हमें क्यों संकोच करना चाहिए?
~बाहरी ज्ञान की तुलना में अपने भीतर की सच्चाई को जानना अधिक महत्वपूर्ण है? क्यों?
~आत्म-ज्ञान और ईमानदारी के बीच क्या संबंध है, और इसे कैसे विकसित किया जा सकता है?
~कृष्णमूर्ति जी के अनुसार, जब हम सच्चाई को स्वीकार नहीं करते, तो यह बेईमानी कैसे बन जाती है?
~क्या सच्चाई को स्वीकार करने के लिए हमें किसी विशेष मानसिकता की आवश्यकता होती है? यदि हाँ, तो वह क्या होनी चाहिए?
🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
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