खबर एक जिला एक उत्पाद योजना से जुड़ी है.. केंद्र सरकार की ये योजना है। मप्र में भी ये योजना लागू है..एक दशक पहले यानी 2012-13 में भी लहसुन की ऐसी ही कीमतें गिरी थी.. तब भी लहसुन फेंका गया था.. 1998 में तो प्याज की वजह से सरकार गिर गई थी.. टमाटर के तो हर साल ही भाव गिरते हैं और गुस्साए किसान टमाटर का टायरों से कुचलकर सॉस बना देते हैं.. कहने का मतलब ये है कि हर साल कोई ना कोई फसल किसानों को रूलाती है... किसानों को फसल का उचित दाम मिले.. बंपर उत्पादन होने की सूरत में उसका भी मैनेजमेंट हो जाए.. ये सब सोचते हुए केंद्र सरकार ने वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडेक्ट योजना लागू की..इसे मप्र ने भी लागू किया. हर जिले ने अपना उत्पाद चुना.. रतलाम और मंदसौर इन दो जिलों ने एक जिला एक उत्पाद के तौर पर लहसुन को चुना था.... यानी दोनों जिलों में प्रीमियम प्रोडेक्ट के रुप में लहसुन चुना गया था.यदि मंदसौर और रतलाम दोनों जिलों के कलेक्टर इस ओडीओपी के तहत जो टारगेट तय किया है उसका 60 फीसदी भी पूरा कर लेते तो आज किसानों को लहसुन फेंकने की नौबत ही नहीं आती.. कलेक्टर दिए टारगेट पूरा नहीं कर रहे हैं... इससे तो सरकार की भी कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं... कलेक्टर कमिश्नर कान्फ्रेंस में होता क्या है...