जितना हम जानते, समझते हैं साहित्य हमें उससे कहीं ज्यादा बड़ी दुनिया देखने के लिए देता है। इसलिए साहित्य मुझे प्रिय है। मैं पुस्तकालयों में जाता था, किताबें पढ़ता था, कई लेखक और कवियों को पढ़ता था। इस तरह मैं किताबों और साहित्य की दुनिया में ही आ गया। दरअसल, जब हम कोई नॉवेल पढ़ते हैं तो एक साथ कई चरित्र को हम एक साथ जीते हैं, तो इस तरह साहित्य के प्रति एक आकर्षण बना। फिर 14-15 साल की उम्र में सोच लिया था, एक ध्वनि आई अंदर से कि मैं लेखक बनूं या न बनूं, लेकिन साहित्य की दुनिया जो मुझे प्रिय है मैं उसी में रहूंगा। वरिष्ठ लेखक और कवि प्रयाग शुक्ल ने बेवदुनिया के साथ विशेष चर्चा में यह बात कही।
जब मैं 23 साल का था तो मुझे हैदराबाद की एक प्रतिष्ठित मैगजीन ‘कल्पना’ में लिखने का मौका मिला। यह मैगजीन बद्री विशाल पित्ती निकालते थे, बद्री विशाल पित्ती एमएफ हुसैन के पहले पेट्रन थे जो उनके चित्र भी खरीदते थे। हुसैन भी वहां आया करते थे, लिखने के साथ ही मेरा बाकी कलाओं की तरफ आने के पीछे ‘कल्पना’ मैगजीन का हाथ रहा, उसके आवरण पर मकबुल फिदा हुसैन और रामकुमार के चित्र छपते थे। बाद में यह लगा कि साहित्य के साथ कलाओं को जानना भी बहुत जरुरी है। इसलिए करीब एक साल तक ‘कल्पना’ में रहकर काम किया।
24 साल की उम्र में दिल्ली खींचने लगी। वहां मेरे मित्र बहुत लिख रहे थे, वे हुसैन की प्रदर्शनी देखते थे, रविशंकर का सितार सुनते थे, यामिनी कृष्णमूर्ति का नृत्य देखते, इब्राहम अल्काजी के नाटक होते थे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में। मुझे लगा कि मैं यहां क्या कर रहा हूं, मुझे दिल्ली जाना चाहिए, तो कुछ पैसे इकठ्ठा कर मैं दिल्ली चला आया। लेकिन मेरे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, फ्री- लांसर था, इसके पहले चित्रकार रामकुमार से मेरी मुलाकाम कोलकाता और हैदराबाद में हो चुकी थी, जब उन्हें पता चला कि दिल्ली में मेरा कोई ठिकाना नहीं है तो उन्होंने मुझे अपने स्टूडियो में रहने के लिए बुला लिया। मेरे प्रति यह उनका अति स्नेह था, मैं करीब 3 महीने तक उनके स्टूडियो में रहा, आप समझ सकते हैं मुझे इससे क्या मिला होगा। एमएफ हुसैन वहां आते थे, तैयब मेहता मिलते थे, निर्मल वर्मा से तो पहले ही मेरी मुलाकात हो चुकी थी, लेकिन वहां उनसे और ज्यादा गहरी दोस्ती हो गई। वे हमसे थोड़े ही बड़े थे, हालांकि निर्मल लेखक के तौर पर स्थापित हो चुके थे, लेकिन उनके प्रति हमारी पीढ़ी में गहरा आकर्षण था।