एक किसान के बगीचे में अंगूर की बेल थी। उसमें हर साल मीठे-मीठे अंगूर फलते थे। किसान था भी अत्यंत परिश्रमी। वह दिन-रात मेहनत करता और उतना ही अच्छा फल पाता। परिश्रमी होने के साथ-साथ किसान परम सत्यवादी और त्यागी भी था। अपने इस स्वभाव के कारण उसने एक दिन विचार किया कि बग़ीचा तो है मेरे श्रम कि देन, लेकिन भूमि जमींदार की है। अतः इन मीठे अंगूरों मे से उसे भी कुछ भाग मिलना चाहिए अन्यथा ये मेरा उसके प्रति अन्याय होगा और मैं ईश्वर के सामने मुँह दिखाने योग्य नही रहूँगा।