सबसे पहले तो ये जान लेना बेहद ज़रूरी है कि मोहर्रम कोई त्योहार नहीं है बल्कि मुस्लिमों के शिया समुदाय के लिए ये एक मातम का दिन है। इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन की याद में मोहर्रम के दिन मातम किया जाता है। बता दे कि ये यह हिजरी संवत (मुस्लिम कैलेंडर) का पहला महीना है। मोहर्रम एक महीना है, जिसमें शिया मुस्लिम दस दिन तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं। मोहर्रम के दिन मातम क्यों किया जाता है इसे जानने के लिए हमें इस्लामी इतिहास के बारे में जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफा का शासन था।
कौन हैं शिया मुस्लिम?
इस्लाम की तारीख में पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रमुख नेता यानी खलीफा चुनने का रिवाज रहा है। ऐसे में पैगंबर मोहम्मद के बाद चार खलीफा चुने गए। लोग आपस में तय करके किसी योग्य व्यक्ति को प्रशासन, सुरक्षा इत्यादि के लिए खलीफा चुनते थे। जिन लोगों ने हजरत अली को अपना इमाम (धर्मगुरु) और खलीफा चुना, वे शियाने अली यानी शिया कहलाते हैं। शिया यानी हजरत अली के समर्थक। इसके विपरीत सुन्नी वे लोग हैं, जो चारों खलीफाओं के चुनाव को सही मानते हैं।
क्या है मोहर्रम
'मोहर्रम' इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है। इसी महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है। इस महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा (Day Of Ashura) कहा जाता है, इसी दिन को अंग्रेजी कैलेंडर में मोहर्रम कहा गया है।
क्यों मनाया जाता है मोहर्रम
मोहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयाइयों का कत्ल कर दिया गया था। हुसैन इराक के शहर करबला में यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे।
http://www.livehindustan.com/news/national/article1--muharram-all-you-want-to-know-about-imam-hussain-and-the-story-of-karbala--574958.html